पिछले दिनों श्रीनगर/कश्मीर में जिहादियों द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग के जिन मासूमों की निर्मम हत्या की गई, उसको लेकर जम्मू और देश की राजधानी दिल्ली में विरोध प्रदर्शन हुए।और कई जगहों पर भी हुए।लोकतंत्र में ऐसे विरोध-प्रदर्शन होने ही चाहिए।मगर प्रश्न यह है कि ऐसे विरोध-प्रदर्शन कितनी बार पंडित-समुदाय ने आज तक किये? और रिजल्ट? जीरो।क्यों?क्योंकि पंडितों का कोई ठिकाना नहीं,कोई सरपरस्त नहीं और न कोई वोट-बैंक ही है।छितरायी कौम! शांतिप्रिय और पढ़ी-लिखी कौम!! जैनियों की बात सुनी गई,गुर्जरों की सुनी गई,मीणाओं की सुनी गई–।क्यों?क्योंकि इन सभी का अपना सॉलिड वोट बैंक जो था।
कश्मीरी पंडितों को भगवान ने या फिर परिस्थितियों ने आवश्यकता से ज़्यादा ही सहिष्णु या सज्जन बनाया है।मगर सच्चाई यह है कि आजकल दुर्जन की पूजा पहले और सज्जन की बाद में होती है।
सभी सरकारों ने शांतिप्रिय कश्मीरी पंडित कौम के दर्द को हर-हमेशा अपने हित में (वोटों की खातिर)खूब भुनाया मगर दिया कुछ नहीं। हाँ,खुराफातियों को बहुत कुछ दिया।उमर अब्दुल्ला को विदेश राज्यमंत्री बनाया,महबूबा को मुख्यमंत्री और अब सुना है नौकरशाह शाह फैज़ल को एलजी साहब का परामर्शक बनाया जा रहा है।वही फैज़ल जिसने आईएएस की नौकरी छोड़ अपनी एक अलग सियासी पार्टी बनाई थी और देश-विरोधी प्रलाप करने लगा था। यह तुष्टीकरण नहीं तो क्या है?वर्तमान सरकार यह आरोप अपनी पूर्ववर्ती सरकार पर लगाती थी!
आचार्य चाणक्य की उक्ति याद आ रही है :’प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए। जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है।‘
DR.S.K.RAINA
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
MA(HINDI&ENGLISH)PhD
Former Fellow,IIAS,Rashtrapati Nivas,Shimla
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice
(Govt. of India)
SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE
(GOVT.OF INDIA)
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